तुम बिन….।
तुम बिन…
तन्हा हूँ और मायूस हूँ।
जिंदगी तो है।
बस,बेजान सा हूँ
तुम बिन…
जाऊ कहाँ?तुम्हारे पास आकर।
यह जीवन पतझड़ सी है।
क्योंकि, एक तुम्हारी कमी है।
तुम बिन…
ना राते कटती है।
ना दिन गुजरता है।
ये कमरें, ये दीवारें
और,मकान का प्रत्येक
कोना-कोना
सुना-सुना सा हैं।
बस,तुम बिन।
:कुमार किशन कीर्ति