बस तुम बेईमान हो
तुम्हें उन लोगों से ख़ब्त की बू आती है
जो बात करते हैं आजादी की
शिक्षा की
रोजगार की
तुमने कभी सोचा है
कितनों ने इसी आजादी,
समता, समानता की बात करने के लिए
जवानी गला दी अपनी
लोहे के जेबरों को
अपने पहुँचे और पसलियों पे ढोते हुए
लोहे के सलाखों के पीछे पिघलते हुए
क्या तुम्हें पता है
कितनों ने अपना बूंद बूंद रक्त बहा दिया
तुम्हारी बाँझ होती नस्ल को सींचने के लिए
तुम्हें तो सब पता है …
बस तुम बेईमान हो
बस तुम बेईमानों को याद रखना चाहते हो
देवता बना कर पूजना चाहते हो
तुम देवता हुए लोगों को
उनका इतिहास रचने में मदद कर रहे हो
ये भूल कर कि देवताओं के इतिहास में
सिर्फ देवताओं का ही समुदाय होता है
पूजकों का कोई जिक्र नहीं होता
कभी नहीं ! कभी भी नहीं
~ सिद्धार्थ