“तुम तो पुरखों के जमाने के हो बाबा”
तुम तो पुरखों के जमाने के हो बाबा।
साथ खेले खाए,
बचपन बिताए हो बाबा,
प्यार, तकरार, वाद-विवाद,
सब निभाए हो बाबा,
तुम तो पुरखों के जमाने के हो बाबा।1
खेत से खलिहानो तक,
रात के विरानों तक,
सिंचाई समाधान तक,
हाथ बटाए हो बाबा,
तुम तो पुरखों के जमाने के हो बाबा।2
दुःख-सुख की बेला में,
तर-त्योहारों के मेला में,
दौपहरीया अर्द्ध बेला में,
साथ बिताए हो बाबा,
तुम तो पुरखों के जमाने के हो बाबा।3
चौमासा, चरागाह सीवान,
ज्येष्ठ मास खाली मैदान,
सावन की अपनी अद्भुत शान,
अखाड़े में हाथ मिलाए हो बाबा,
तुम तो पुरखों के जमाने के हो बाबा।4
✍वर्षा(एक काव्य संग्रह)से/ राकेश चौरसिया”अंक”