तुम जाने महफिल हो
खुदा के वास्ते आओ के तुम जाने- महफिल हो….
हजारो हो और तुम न हो ये कमी अच्छी नहीं लगती…
तुम्हारी प्यारी सूरत पे खुदा की है कसम हमको…
ये मुझ से इस कदर की बेरुखी अच्छी नहीं लगती…..
फ़ज़ाओ में तेरी खुशबू ना हो तो हवा अच्छी नहीं लगती….
तेरी आवाज़ के आगे ये मौसिकी अच्छी नहीं लगती…..
चलो अब मुस्कुरा दो फिजा में रंग बिखरा दो…
कसम से ये आंखों की उदासी अच्छी नहीं लगती…..
तुम्हारे बिन बहारो में बाहर अच्छी नहीं लगती…
सुनो
आ जाओ अब ये जिंदगी अच्छी नहीं लगती….
Shabina naaZ