तुम गुलाम हो
तुम गुलाम हो .
क्या कहूँ ?
भारत माता ,
हिंदुस्तान ,
या इंडिया ..
हम इसी फेर में फसे हैं
आजादी के बाद ..।
किस चीज की आजादी ?
देश को तोड़ने की ..
किसी से भी अपशब्द कहने की ..
राजनेता बनने की …
तू दलित मैं सवर्ण वो मुस्लिम ..
ये काला , ये श्वेत ..
ये पूर्वी , उत्तरी …
ये उस का बेटा , भतीजा ..
वर्गों में बाँटने की …
कभी सुना कि ये ..
मानव के उत्थान के लिए
सब एक साथ आये हैं…
नहीं ना …!
तो किस चीज की आजादी ?
तुम गुलाम हो ..
आज भी ..
इन अदृश्य बेड़ियों ने जकड रखा है ..।
क्या कुछ नहीं करा दिया …
किसी को परलोक में स्वर्ग ने तो किसी को जन्नत ने ..
हूरों , अप्सराओं ने आज के जीवन को नर्क बना दिया ..
माणिक्य बहुगुना