तुम और मैं
हर उतार चढ़ाव में
तुम्हारे साथ बहती
राह के पत्थरों से
भी झगड़ती,,,
तेज़ नदी सी मैं
तुम्हारे साथ साथ चलती
पर तुम,,,,तुम जब
पानी से बह निकलते
हो कहीं ओर
थाम लेते हो
कोई दूसरा छोर,,,
तो मैं,,,,,,,
कहां रह जाती हूं मैं
हो जाती हूं निष्प्राण
रह जाती हूं
कंकड़-पत्थरों का ढेर
@बूंदें