तुम्हें आभास तो होगा
अपने भीतर की घुटन का,
तुम्हें आभास कहां होगा ।
पीड़ा की अनुभूति का,
तुम्हें आभास कहां होगा ।।
जीवन की परिभाषा का,
तुम्हें आभास कहां होगा ।।
जीवन-मरण के सत्य का
तुम्हें आभास कहां होगा ।।
कम होती सहिष्णुता का,
तुम्हें आभास कहां होगा ।
गिरते नैतिक मूल्यों का,
तुम्हें आभास कहां होगा ।
बन रहे मानव से दानव,
तुम्हें आभास कहां होगा ।
अपनी विवेक शून्यता का,
तुम्हें आभास कहां होगा ।।
‘मन में स्थित ईर्ष्या-द्वेष का,
तुम्हें आभास कहां होगा ।।
स्वयं में तुम भी जीवित हो,
तुम्हें आभास कहां होगा ।।
डाॅ फौज़िया नसीम शाद