तुम्हारी याद के साये
अँधेरे आप घिर जाते
घटा घनघोर जब छाये
हुए अब और भी गहरे
तुम्हारी याद के साये
गुजर कितने गए मौसम
हुआ पतझार बस अपना
हमारे एक होने का
अधूरा ही रहा सपना
हमारी ज़िन्दगी में तो
उजाले फिर नहीं आये
हुए अब और भी गहरे
तुम्हारी याद के साये
भरी तन्हाइयों में भी
न मन का शोर जीने दे
नहीं मिलती दवा गम की
जहर कोई न पीने दे
हमारी आँख से सावन
रुके से रुक नहीं पाये
हुए अब और भी गहरे
तुम्हारी याद के साये
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद(उ प्र)