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18 Mar 2020 · 1 min read

तुम्हारी कनपटी पर

कटे या न कटे पर कसमसा कर हम भी बैठे हैं
तुम्हारे इश्क में गर्दन फँसाकर हम भी बैठे हैं

जमाना चल रहा है चाल शतरंजी ज़माने से
वजीरी दांव पर अपनी लगाकर हम भी बैठे हैं

किया करते हो जो परदा गुनाहों पर हमेशा तुम
शराफत पर वही परदा चढ़ाकर हम भी बैठे हैं

अभी से कर लिया क्यों फैसला ये ताजपोशी का
अभी तो महफ़िलों में सर झुकाकर हम भी बैठे हैं

तुम्हीं हो खून के प्यासे ढिंढोरा पीटने वाले
वतन के वास्ते कुछ सर कटाकर हम भी बैठे हैं

निशाना है मेरा सीना तुम्हारी गोलियों का गर
तुम्हारी कनपटी पर गन सटाकर हम भी बैठे हैं

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