तुम्हारा
दो दीये दिन में जले
दो दीये रात
चार चांदनी लगे
दो दिन बरसात
क्षिति का स्पंदन है
किरणें बिखेरती प्राची से
प्रतीची भी शरमा गए
दोनों दीप-ज्योति सी फैल गए
चहुंओर…..!
रात में कांति उमंग उत्साह उत्सव है
श्रीराम शरवृष्टि की हुंकार गर्जन है
लंकापति रावण भी थरथरा गये
अयोध्या की नगरी सरयू है
काशी में अस्सी घाट
हजार-लाख-करोड़ दीप जलें
प्रयाग के त्रिवेणी गंगा घाट
घर-परिवार के पंख खुले
खुशियों की सरताज
हर कोने-कोने दीप जलें
जलाएं श्री वीर हनुमान।
दिखती देखो प्रतिबिम्ब छाया
सूर्य नहीं दीया के है
होगी उज्ज्वल भावी हमारा
श्रद्धा भक्ति लय मेघपुष्प दिव्य
तुम्हारा….!