तुम्हारा स्पर्श
तुम्हारा स्पर्श पाते ही
पिघल जाता सब कुछ
अंतर्मन में जो भरा पड़ा है,
बह जाता वह सब कुछ
जो पीड़ा घनीभूत जमा है,
सदियों से बंद पलको के द्वार
मानो एकाएक खुल गए ,
तुम्हारे स्पर्श मात्र से ही गिरते हुए
समस्त भाव ऊपर उठने लगते,
हवा का एक शीतल झोंका सा
तुम्हारा स्पर्श
हठखेलियाँ करता सरसराकर
मेरे वजूद से गुजर के मुझमें
उन्माद भर देता ,
तुम्हारा स्पर्श पाते ही
महफूज हो जाते हैं,
इस बेदर्द जमाने में,
और हम सिमट जाते,
तुम्हारे ही अस्तित्व में,
तुम्हारा ही हिस्सा बनकर।
पूनम कुमारी(आगाज ए दिल)