तुमसे दूर इस उदास शहर में, उस सूखती नदी के किनारे पर बैठा हु
तुमसे दूर इस उदास शहर में, उस सूखती नदी के किनारे पर बैठा हुआ सोचता हूं मैं, “नेह से बंधे रिश्ते इतने नाजुक क्यों होते हैं कि जरा-सी मुश्किलों से टूट जाते हैं।” मैं सोचता हूं किसी रोज हम दोनों मिलेंगे किसी ऊँचे पहाड़ के नीचे या फिर किसी उफनती हुई नदी पर बने पुल के ऊपर और यदि वहाँ भी नहीं तो हम मिलेंगे किसी श्मशान में आस-पास जलती हुई चिताओं की तरह।
हम बातें करेंगे! वो सारी बातें, जो हमने बचा के रखी थीं, किसी सफ़र में एक-दूजे से साझा करने के लिए, इस सूखती हुई नदी के किनारे पर किसी शाम बैठकर बाँटने के लिए या फिर अनवरत बहती गंगा में विसर्जित अस्थियों के साथ सदा-सदा को डूब जाने के लिए।❤️
‘सोच’