तुमको दिल में सजा के रख लूँगा
बिजली की चमक देखी है
तेरे इन नैनों में मैने उस दिन
जब में अपने शब्दों को तलाश
रहा था लिखने को अंधेरो में !!
हकीकत बन कर तुम आ गई
सामने मेरे उस दिन
जिस दिन अपनी उलझनों
को संवार रहा था अंधेरे में !!
सुलझा दिया तुमने मेरा
बिगड़ता हुआ वो कल का सपना
यह जान कर खुश हुआ दिल
चलो यह सपना तो है अपना !!
ख्वाब तो रोजाना मैं देखा करता हूँ
कोई तो हो जो जाने मुझे को अपना
यह चन्द लम्हें साथ गुजार लूं
ताकि कोई तो कहने वाला हो अपना !!
यादो कि बारात संजो कर रख लूँगा
तेरे ख्वाबो को मैं अपना बना के रख लूँगा
दुनिया का क्या है वो तो कहती रहेगी
तेरी हर बात को दिल में सजा के रख लूँगा !!
अजीत कुमार तलवार
मेरठ