तुमको ढूँढूं मैं कहाँ अरे, तुम सारी दुनिया से हो परे!
तुमको ढूँढूं मैं कहाँ अरे,
तुम सारी दुनिया से हो परे!
फूलों फलियों और कलियों में,
सब सब में हैं तुम्हारे रंग भरे,
तुमको ढूँढूं मैं कहाँ अरे,
हर नर के और हर नारी के,
सज्जन के या व्यभिचारी के,
सब के ही तुमने कष्ट हरे,
तुमको ढूँढू मैं कहाँ अरे,
तुम सारी दुनिया से हो परे!
पवन में और अपावना में,
नूतन में और पुरातन में,
सब में तुमने निज अंश भरे
तुमको ढूँढू मैं कहाँ अरे,
तुम सारी दुनिया से हो परे!
निज स्वर्ग और निज वसुधा में,
गोकुल में बृज में मथुरा में
संपूर्ण विश्व में पग हैं धरे
तुमको ढूँढू मैं कहाँ अरे,
तुम सारी दुनिया से हो परे!
निज गृह में बन में जीवन में,
कोमल और शान्तिशील मन में
सब में हो रमे और बिखरे
तुमको ढूँढू मैं कहाँ अरे,
तुम सारी दुनिया से हो परे!
कोलाहल में नीरवता में
क्रोधानल या धीरजता में
सब में हैं तुम्हारे भाव भरे
तुमको ढूँढू मैं कहाँ अरे,
तुम सारी दुनिया से हो परे!