तीली
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टकराकर अपने ही अंश से
राख बन जाना नियति है हमारी।
ऊर्जा उंडेलकर,रौशनी उपजाकर
तम का दाग बन जाना
सिद्धि है हमारी।
तिल-तिल जलना मेरा,
अंधेरे को, उजाला बनाए रखता है।
शनै: शनै: प्रकाश में मेरा पिघलना
हर अस्तित्व को जिलाए रखता है।
राख से उतरता हूँ अग्नि में जब,
मैं फिर पैदा होता हूँ ।
तय करते हुए अनंत पथ सृजन का
मैं पुन: तीली में परिवर्तित होता हूँ।
मैं जलता हूँ, मैं जलाता हूँ।
मैं हंसी बांटता और आँसू रुलाता हूँ।
अग्नि मेरा उद्देश्य है और लक्ष्य भी।
मैं सर्वभक्षी हूँ और स्वयं भक्ष्य भी।
मैं एकबार नहीं हजार बार
जीता मरता हूँ ।
इस सृष्टि को पूरा और अधूरा
बारबार करता हूँ।
मैं आदमी में कैसे सुलग जाता हूँ
पता नहीं।
मै क्रोध,ईर्ष्या में कैसे उलझ जाता हूँ
पता नहीं।
मेरा अग्निस्नान,मेरा नहीं,
अग्नि का स्नान है।
मैं हूँ इसलिए भगवान,
भाग्यवान है।
————11/sept/21——————-