तिनका
दिखा जाता है कमाल
तिनका भी,
आखिर महत्व है अपना
उनका भी।
अगर आँख में पड़ जाए तो
बहुत चुभता है,
अहसासों में गिर जाए तो
बहुत दुखता है।
तिनका-तिनका जुड़ जाए तो
नीड़ बनता है,
तिनका-तिनका उजड़ जाए तो
घर कहाँ बसता है?
तिनका को यूँ ना समझना
हाड़ भी जोड़ता है,
सुना है हमने तिनकों से
पहाड़ भी बनता है।
घर में बिखरे हों तिनके अगर
तो बहुत बुरा लगता है,
पर मुट्ठी भर तिनकों के हाथ
दुनिया साफ करता है।
(मेरी 22वीं काव्य-कृति : ‘परछाई के रंग’ से,,)
डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
साहित्य वाचस्पति
अमेरिकन एक्सीलेंस राइटर अवार्ड प्राप्त
हरफनमौला साहित्य लेखक।