“तिनका-तिनका”
मैं तो टूटी डाली ठहरी
घास-फूस और दूब,
अहम मुझमें तनिक भी नहीं
कृष-काया सा रूप।
आश्रय देता आठों पहर
जिसने तिनका-तिनका जोड़ा,
समझा जो भी तुच्छ मुझे
उसका गुमान भी तोड़ा।
चुभ जाऊँ आँख में अगर तो
हाय-तौबा मच जाते,
तन्हा- तन्हा देख कर मुझे
पक्षी ससम्मान ले जाते।
जुड़- जुड़ कर बना घरौंदा
बिखर जाने से हारा,
जमाने वाले भी तो कहते यही
डूबते को तिनके का सहारा।
झाड़ू बनकर भी कर देता
घर-आँगन की सफाई,
मत सोचना बे-फिजूल मुझे
ओ मेरे प्यारे भाई।
डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
श्रेष्ठ लेखक के रूप में विश्व रिकॉर्ड में दर्ज
टैलेंट आइकॉन-2022