तिजारत
कद्र तुम हम दिलवालों की क्या करोगे ?
सौदागर हो प्यार को गरज़ से ही तोलोगे।
जब तक निभ सकी निभा दी गयी दोस्ती ,
रास न आया तो बेजार होकर मुंह फेरोगे। ,
एक तिजारत ही थी ,कब दिल लगाया था ,
ना हुआ मुनाफा तो कहीं और सौदा करोगे ।
इस दुनिया-ऐ-फानी में पानी सारे रिश्ते है ,
जो भा गया प्याला उसी में समा जाओगे।
यह भी ना सोचोगे किसी पर क्या गुजरेगी ,
शीशा ए दिल तोड़कर तुम चलते बनोगे ।
इतनी फुर्सत भी कहाँ दूर करें गीले-शिकवे ,
कोई भरता रहे आहें,तुम अपनी खैर मनाओगे ।
“अनु” को रहने दो अपनी तन्हाइयों के साथ ,
मगर सोच लो तुम भी खुश ना रह पाओगे।