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4 Sep 2024 · 1 min read

ताड़का सी प्रवृत्ति और श्याम चाहिए,

ताड़का सी प्रवृत्ति और श्याम चाहिए,
शूर्पणखा जैसी चाह, वो राम चाहिए।

शकुनी की नियति, छल की पहचान चाहिए,
रावण सा अभिमान, वो सम्मान चाहिए।

माया की मूरतें, सत्य के रंग में लिपटी,
कर्मों की धूर्तता में इमान चाहिए।

दुशासन से पुरुष, जो नारी का मान ढोएं,
अधर्म के संग उनको, धर्म का नाम चाहिए।

समर्पण के नाम पर, जो बंधन में जीएं,
उन आँखों में भी, वही अहसान चाहिए।

हक की आवाज़, बस उन्हें ही दबानी,
पर खुद की रगों में, वो अरमान चाहिए।

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