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8 Dec 2016 · 1 min read

तहरीरें काग़ज़ पर उतार लीजिये……….

तहरीरें काग़ज़ पर उतार लीजिये
लीजिये क़लम मेरी उधार लीजिये

जब फ़र्श-ए-गुल लगा दिया हवाओं ने
आइए मज़ा- ए- चमन- ज़ार लीजिये

हो जाती है ग़लती जाने -अनजाने
बेहतर है उसे स्वीकार लीजिये

हम क्या हमारा ये जहाँ आपका है
इक फूल क्या आप गुलज़ार लीजिये

टटोलकर नब्ज़ बारीकियों से उसका
दिल क्या फिर जान भी सरकार लीजिये

इक वक़्त के सिवा सब लौट आयेगा
गहराइयों से दिल की पुकार लीजिये

पास कुछ भी नहीं मगर सब कुछ है’सरु’
अमीबा की मानिंद आकार लीजिये

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