समंदर
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
चाहता है जो
सुशील मिश्रा ' क्षितिज राज '
आप कोई नेता नहीं नहीं कोई अभिनेता हैं ! मनमोहक अभिनेत्री तो
रिश्तों में जान बनेगी तब, निज पहचान बनेगी।
बातें कल भी होती थी, बातें आज भी होती हैं।
मैं एक फरियाद लिए बैठा हूँ
नजरों को बचा लो जख्मों को छिपा लो,
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
सच के साथ ही जीना सीखा सच के साथ ही मरना
अपनी सीमाओं को लान्गां तो खुद को बड़ा पाया
अब रिश्तों का व्यापार यहां बखूबी चलता है
ऑंसू छुपा के पर्स में, भरती हैं पत्नियॉं
उसकी सौंपी हुई हर निशानी याद है,
मन राम हो जाना ( 2 of 25 )
■ सनातन पर्वों के ख़िलाफ़ हमारे अपने झूठे संगठन।