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13 May 2024 · 1 min read

बैर नहीं प्रेम

रचना नंबर (9)

बैर नहीं प्रेम

विधा…मनहरण घनाक्षरी

नोक-झोंक काट-छांट,
राग-द्वेष छोड़-छाड़,
प्रेम-भाव बहाइए,
सँवरेगी ज़िन्दगी।

राम-नाम कृष्ण-जाप,
धर्म-कर्म ध्यान-ज्ञान,
निश-दिन विचारिए,
निखरेगी बन्दगी।

अपना-पराया नहीं,
अच्छा-बुरा सब सही,
निरपेक्ष रहने में,
दूर होगी गन्दगी।

सुख-दुख माया-मोह,
जीवन-मरण भोग,
तेरा-मेरा त्याग करो,
प्रसन्न बजरंगी।

स्वरचित
सरला मेहता
इंदौर

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