तवायफ
तवायफ–
मुसई को जन्म देते ही अनिता चल बसी मंगल को बच्चे के लालन पालन के लिए बड़ी मुश्किलें आने लगी धन दौलत कि कोई कमी नही थी अतः उनके पास गांव वाले नित नए नए प्रस्ताव लेकर उनकी दूसरी शादी के लिये आते उन्ही में एक था चुरामन जो नाम तो चुरामन था लेकिन काम सदैव छूरामन जैसा ही करता था ।
मंगल के पिता नर्वदा ने चुरामन के दादा सकल को कर्ज में पांच सौ रुपये दिए थे जिसे वह चुका नही पाये और जो जमीन उसके पास थी वह नर्मदा के नाम हो गयी यह शर्त कर्ज की शर्तों में सम्मिलित थी तबसे भूमिहीन होकर नर्वदा के यहां चाकरी करते बाद में चुरामन के पिता सकल मंगल की चाकरी करते अब चुरामन को यह बात मन ही मन बहुत अखरती मंगल दादा के जमाने की बात भूल कर चुरामन को अपने विश्वसनीय लोंगो में शामिल कर रखा था ।
जब चुरामन उनके पास उनके दूसरे विवाह का प्रस्ताव लेकर आया और इतने आकर्षक तरह से प्रस्तुत किया कि मंगल के मन मे काम सौंदर्य की अभिलाषा जाग उठी चुरामन था ही शातिर उसने शकुनि की तरह छल कि चासनी में लपेट कर एक से बढ़कर एक पासे फेंके जिसके आकर्षण बसीभूत मंगल फंस गए और बोले चलो कब विवाह कि बात करने चलना है चुरामन बोला अतवार के मलिक दो दिन के लिए हमे बाहर नाना के यहां जाना है तब तक हम लौट आएंगे।
चुरामन को जैसे पीढ़ियों कि शत्रुता के अन्तरयुद्ध के विजय का मार्ग मंगल मिल गया हो और उसके परिवार जीवन के लिए मंगल ही मंगल होने वाला हो ।
वह सुबह ब्रह्म मुहूर्त में घर से निकला और जा पहुंचा मीना बाई के कोठे पर वह मीना बाई के लिए रसूखदार ग्राहकों को भेजता रहता था मीना बाई के यहां आते जाते उसकी नज़र मीना बाई के कोठे की कच्ची कली तरंगी बाई पर थी जिसकी नथ उतरनी अभी बाकी थी कोठे के रिवाज के अनुसार कोठे कि लड़की जब पहली बार हमविस्तर होती है तो उसे नथ उतराई कि रश्म कहते है और यह रश्म वही मर्द पूरी करता है जो कोठे कि उस कच्ची कली कि वाजिब कीमत कि भुगतान करता है ।
तरंगी बहुत खूबसूरत जवान और अल्हण थी किसी को भी एक नज़र में पसंद आ सकती थी चुरामन ने मंगल से अपनी खुंदक एव योजना कि पूरी चर्चा कि और तरंगी के साथ एक मंगल की अल्पकालिक विवाह का प्रस्ताव रखा मीना बाई को चुरामन का प्रस्ताव पसंद आया और वह राजी हो गयी चूरामन फिर अपने नाना के घर आया और उसने मंगल के पिता नर्वदा के द्वारा पारिवारिक विनाश कि दुहाई देकर इस बात के लिए राजी कर लिया कि तरंगी को जिस दिन मंगल देखने आएगा उस दिन उनके ही घर आएगा और विवाह कि बात वही होगी चुरामन के नाना मिल्कियत को कोई बहुत समझाने की आवश्यकता नही पड़ी वह फौरन मान गए
चुरामन गांव रमवा पट्टी लौट आया ।
इधर मंगल बड़ी बेशब्री से चुरामन का इंतज़ार कर रहे थे उनके मन मस्तिष्क पर चुरामन ने सौंदर्य एव वासना का भूत चढ़ा दिया था।
इतवार आया चुरामन मंगल के पास सुबह सज धज कर ऐसे आया जैसे उसी की शादी होने वाली हो और मंगल भी तैयार होकर चुरामन का इंतज़ार ही कर रहे थे ।
मंगल एव चुरामन दोनों ही एक साथ चुरामन के नाना के घर जन्थरा पहुंच गए मिल्कियत चुरामन के नाना ने बड़ी आओ भगत किया मंगल के मन मे वह सौंदर्य देखने की व्यग्रता थी जिसे चुरामन ने उसके मन मंदिर में बसा रखा था ।
लेकिन मिल्कियत और चुरामन मंगल कि उत्सुकता को और बढ़ाने की नीयत से इधर उधर की बात करते रहे जब दिन के तीन बज गए तब मंगल ने आजिज आकर कहा चलो चुरामन हम समझ गए यहां कुछ नही है चुरामन शातिर अंदाज़ में बोला मालिक अबही लीजिये और वह घर के अंदर गया और मीना के साथ तरंगिनि को साथ लेकर आया और बोला मालिक ई रही आपकी अमानत तरंगिनि अउर ई है एकी माई मीना मंगल ने तरंगिनि को देखा तो देखते ही रह गए तीखे नाक नक्श वाली गुलाबी ओठ हिरनी जैसी आंखे गाल जैसे गुलाबी गुलाब उनको तो यह समझ मे ही नही आ रहा था कि वह सपना देख रहे है या सच्चाई उनको देख कर तरंगिनि मंद मंद नगीन कि तरह मुस्कुरा रही थी जिसके विष का अंदाज़ा भी नही था मंगल को एका एक मंगल का ध्यान को खिंचते हुये चुरामन बोला मालिक तरंगिनि पसंद आई मंगल ने कहा हा और बोले की का ई हमरे बेटवा का देख रेख करी पाई लागत अईसन बा एकर पांव कबो जमीनें नाही पड़ल बा चुरामन एव मिल्कियत दोनों एक साथ बोल उठे एकर जबाब त तरंगिनि ही दै सकती है तरंगिनि फट बोली मालिक आपके बेटवा हमार बेटवा वोके तनिको नाही लगी कि ऊ हमार बेटवा नही ह आप निश्चिन्त रहीं।
इत्मिनान करने के बाद निश्चित हुआ कि मंगल का विवाह मंदिर में एक महीने बाद होगा सगुन के लिए मंगल ने तरंगिनि के साथ कथित उसकी मां को एक हजार रुपया दिया।
विवाह के लिए निर्धारित हुआ गांव का कली मंदिर विवाह की तिथि निर्धारित हुई दीपावली के दस दिन बाद ।
सारा निर्धारण करने के बाद मंगल और चुरामन गांव लौट आये दोनों के लौटते ही गांव में मंगल के दूसरी शादी कि खबर पूरे गांव में आग कि तरह फैल गयी गांव वाले मंगल को बधाई देने आने लगे जो भी आता इतना ही कहता मलिक छोटे मालिक के लिए अच्छी माँ मिल जाये ताकि परिवरिश अच्छी हो जाये मंगल भी लोगो की दुआओ से बाग बाग होते ।
उनके अंतर्मन में तरंगिनि कि बेहद सुंदर छवि ने नीद हराम कर रखा था उनको कभी अनहोनी शंकाए भी डसती रहती इसी तरह दिन बीतते बितते मंगल के विवाह का दिन आ गया ।
मीना बाई मिल्कियत तरंगनी को लेकर आये (डोला कड़वा विवाह हेतु) जब लड़की वाले बेहद गरीब होते है तब वे अपनी लड़की को लेकर लड़के वालों के घर जाते है जिसमे लड़की का डोला बिना सुहागन कुआरी ही बाबुल के घर से जाता है और पीहर के यहाँ ही वह सुहागिन बन उसके घर मे रहने लगती है इस प्रथा को डोला कड़वा विवाह कहते है।
तरंगिनि भी मंगल सिंह से विवाह के लिए उनके गांव काली मंदिर पहुंची टोला कड़वा विवाह के लिए मंगल सिंह से विधिवत उसका विवाह हुआ और सुहागरात कहे या यूं कहें नथ उतरवाई के रश्म के लिए वैवाहिक सेज पर पहुंची तरगिनी के संस्कार एव वेश्या के संरक्षण में हुआ था अतः उंसे वैवाहिक बंधन से कुछ लेना देना नही था उंसे तो स्वंय के कौमार्य भंग की कीमत चाहिए थी ।
अतः उसने सुहाग की सेज पर अपने सौंदर्य के पिपासु मंगल से सौदा करने लगी जिसे वासना में अंधे हो चुके मंगल कि नज़रे नही देख पा रही थी ।
तरंगिनि ने मंगल सिंह से उनकी पूर्व पत्नी एव खानदानी जेवरात मांग कर सुहाग की सेज सजाने की बात कही मंगल सिंह को बहुत जल्दबाजी थी उन्होंने अपने घर के सबसे कीमती बक्से कि चाभी ही तरगिनी को दे दी तरगिनी झट उठी और जितने भी बेशकीमती गहने पहन सकती थी पहन लिए लगभग उसने चैथाई जेवर जो पहने जा सकते थे पहन कर मंगल के सेज पर गयी ।
मंगल को तरंगिनि को अपने आगोश में भर कर जैसे स्वर्ग मिल गया हो ।
दो ही चार दिन में मंगल विल्कुल तरंगिनि के बसी भूत हो गए चूरामन मंगल से जब मिलने आता तो तरंगिनि से अवश्य मिलता अब चूरामन मंगल का सबसे विश्वसनीय जो हो चुका था।
तरंगिनि मंगल सिंह के बेये मुसाई का भी बड़ी संजीदगी से देख भाल करती जिसके कारण मंगल को कोई शक की गुंजाइश नही बचती मंगल ने घर की सभी जिम्मेदारी तरंगिनि को सौंप दी स्वयं उसके रूप जाल के भंवर में फंस कर रह गए ।
चुरामन ने एक दिन तरंगिनि को विवाह के उद्देश्य एव योजनाओं को स्मरण कराया तो तरंगिनि को लगा की वास्तव में वह उद्देश्य से भटक गई है उसको चुरामन ने मंगल को शराब का आदि बनाने का नुख्सा बताया उसने तरगिनी से कहा देखो मंगल से कहो कि तुम उसे खुश नही रख पा रहे हो उम्र अधिक होने के कारण आलसिया जाते हो अतः थोड़ा थोड़ा दारू पिया करो नसों में खून का रफ़्तार बढ़ेगा और आलस नही आएगी चुरामन कि बात मानते हुए तरंगिनि ने मंगल को ठीक वही सुझाव दिया और दारू की बोतल सामने रख खुद मैखाना बन गयी मंगल सिंह को भी बहुत अच्छा लगता रात को दारू के नशे में तरगिनी के साथ रहता दिन में दारू कि खुमारी में आलसिया रहता ।
अब मंगल बिल्कुल तरंगिनि का गुलाम बन चुका था तरगिनी मुसई के ध्यान में कोई कमी नही रखती इसीलिये मंगल को कोई शक नही होता धीरे धीरे दस वर्ष बीत गए और इस बीच तरंगिनि ने सभी मूल्यवान गहने सोने चांदी जेवरात चूरामन के हाथों बाहर भेज दिया मंगल को शक का कोई कारण नही दिखता क्योकि तरगिनी मूसाई कि देख रेख वैसे ही करती जैसे माँ करती है नर्वदा की उम्र भी ग्यारह वर्ष हो चुकी थी अब तरगिनी को तो उसकी जवानी की पूरी कीमत मिल चुकी थी अतः वह अब मंगल के साथ नही रहना चाहती थी उसने चुरामन से पूछा कि अब हम तो मंगल को छोड़ कर जा सकते है ।
चुरामन बोला अभी कैसे जाबे बुजरी हमार काम के करी केहू दूसर बाई जी के हम कहा से खोजब तरगिनी को बहुत बुरा लगा मगर उज़के पास कोई रास्ता नही था चुरामन बोला सुन बुजरी अब तोरे में ऊ दम ना बा कि तोरे जाय मीना बाई के कोठा गुलज़ार हो जाये मंगलवा तोके चूस डारे बा ।
अब ते एके कार कर जेवरात सोना चांदी त तै हिफाज़त से रखवाई लेहले हॉउये अपने खातिर अब मंगलवा के सगरो जमीन ज्यादाद हमरे नाम कराई दे तरगिनी पूछी ऊ कैसे तब चुरामन बोला सुन बुजरी ते मंगलवा सार के शराब के आदि और अपने ख़ूबहसुरती कि जाल में फँसाई लेहले हउवे अब सिर्फ एक काम कर कि मंगला तड़फ तड़फ के मरीजा तरंगिनि बोली ऊ कैसे चुरामन बोला सुन तरंगिनि जब मंगल के शराब दे वोमे अपने हाथ चाहे पैर के नाखून काटके जला के वोकर राखी (राख )दे मंगल के और आगे हम बताएब ।
तरंगिनि अब नियमित मंगल के शराब में अपने नाखून कि राख मिलाती मंगल को भी बहुत मज़ा आता ।
लेकिन उसको क्या पता कि वह किस भयंकर षडयंत्र का शिकार हो चुका है धीरे धीरे एक वर्ष बीत चुका एकाएक एक दिन चुरामन ने तरंगिनि को एक सादा कागज दिया और बोला यह कोरट का कागज है इस पर मंगल के अंगूठा और दस्तगत दोनों ले लेना।
तरगिनी भी दस्तखत एव अंगूठा लेने के सही समय का इंतज़ार करने लगीं ।
एक दिन वह मनहूस घड़ी भी आ गयी जिस दिन मंगल के पीढ़ियों की विरासत पीढ़ियों की द्वेष बैर के भेंट चढ़ गई नर्वदा साढ़े बारह वर्ष का हो चुका था वह अपने कमरे में सो रहा था रात आधी बीत चुकी थी तरगिनी ने मंगल को शराब के नशे में धुत कर दिया था अपने सौंदर्य एव वासना में तो पहले से ही जकड़ रखा था बड़े ही प्रेम से बोली आप ही तो मेरे लिए सब कुछ हो आपके लिए आपके घर आई आपकी इच्छा अनुसार मूसई का पालन पोषण कर रही हूँ ।
अपनी कोख को बाझ बनाकर सिर्फ आपके मु स ई के लिए रखा है मुझे कभी कभी डर लगता है कि खुदा ना करे आपको कुछ हो जाये तो मेरा क्या होगा मंगल बोला मुझे कुछ नही होगा बताओ तुम्हारे लिए क्या करूँ जिससे इत्मीनान हो जाये ।
तरंगिनि ने तुरंत बिना विलम्ब किये चुरामन द्वारा दिये कागजात मंगल के सामने रख दिये मंगल को नशे में कुछ दिखाई नही दे रहे थे उसने बिना बिलम्ब अंगूठा दस्तगत दोनों ही दे दिए तरगिनी प्रतिदिन कि भांति ही मंगल के साथ रही एक दो दिन बाद चुरामन जब आया तब उसे कागज दे दिया जब चुरामन को कागज देने के बाद चुरामन बोला अब तोके जहाँ जायके बा जो हम टोके नाही जानत ।
साली जे आदमी तोरे पर इतना भरोसा किहिस आपन सब कुछ दे दिहिस वोकर ना भईले त केकर होबे एहि लिए कहा जात है सांप पर भरोसा करिह बेश्या पर नाही।
अब तो तरंगिनि के पास कोई रास्ता ही नही बचा था मंगल के पास रुकती तो उसका भांडा चुरामन भोड़ता क्योकि उसका मतलब तो पूरा हो चुका है मंगल बाहर सो रहा था।
तरंगिनि बैचैन किसी तरह से शाम होने का इंतजार करने लगी शाम होते ही वह निकली किसी को पता नही और नही लौटी मंगल रात भर इंतजार करता रहा सुबह वह थाने पहुंचा और दारोगा जी को सारी कहानी बताई और तरगिनी को खोजने कि गुजारिश कि दारोगा मीर बक्स ने आश्वस्त करते हुए मंगल को विदा किया दस पंद्रह दिन महीने दो महीने बीत गए मगर तरगिनी का कोई पता नही चला।
एकाएक चुरामन अदालत का आदेश लेकर मंगल के पास उपस्थित हुआ बोला मंगल हिसाब बराबर पांच सौ रुपए के लिए तुम्हारे बाप दादाओं ने हमारे परिवार को जमीन जयदाद से बे दखल किया था आज मैं तुम्हे बे दखल करता हूँ ये रहे अदालत के आदेश अब तो मंगल के पैर के नीचे से जमीन खिसक गई क्या करता अब उसके पास कुछ भी नही बचा था ।
चुरामन ने अपनी कुटिल मुस्कान के साथ मंगल को तरगिनी की सच्चाई बताई मंगल की आंखों के सामने अंधेरा छाने लगा वह एका एक अचेत होकर गिर पड़ा तुरंत उंसे वैद्य के पास ले जाया गया जहां वैद्य जी ने उसको मृत घोषित कर दिया और कारण बताया शराब में जले हुये नाखून कि राख से धीरे धीरे गेहुआं सांप के समान विष ने असर किया है जिसका कोई इलाज नही होता है।
अब बारह तरह वर्ष के मु स ई के पास ना तो पिता कि छाया थी ना ही खानदानी दौलत ।।
नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उतर प्रदेश।।