“तलाश’
यहॉं पत्थरों में भगवान न तलाश,
ये कल का युग है इंसान न तलाश।
यहाँ आदम की हजारों किस्में हैं,
कोई स्टैण्डर्ड पहचान न तलाश।
गर मंजिलें बहुत ऊंची हो तो,
कोई रास्ता आसान न तलाश।
पथरीले हैं ये जिन्दगी के रास्ते,
कोई हमराही अनजान न तलाश।
सीखों इंसान को पढ़ने का हुनर,
किताब में लिखे ज्ञान न तलाश।
जो अपना सर्वस्व अर्पण कर सके,
वो सिर-फिरे इंसान न तलाश।
जो इंसान के काम आए ‘किशन’,
हो सके तो वो इंसान तलाश।
– डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
साहित्य वाचस्पति +
भारत-भूषण सम्मान प्राप्तकर्ता।