तलाश..!
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न जाने कहां से आकर वे,
ज़िन्दगी तबाह कर गये।
जी रहा था अपने जहां में,
ज़िन्दगी वीरान कर गये।।
ज़िन्दगी की यह वीरानी,
अब! कैसे होगी दूर।
नहीं रहा अब कोई साथी,
मेरी मंजिल हैं बड़ी दूर।।
कदम-कदम मंजिल-राह!
यह कैसा घोर अंधेरा हैं।
अब किसे कहें हम,अपना!
ये अपनों का ही घेरा हैं।।
क्या हैं रोशनी कहीं…..?
हैं रोशनी की तलाश मुझे।
यह कैसी-कैसी डगर हैं,
हैं मंजिल की तलाश मुझे।।
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रचयिता: प्रभुदयाल रानीवाल
===*उज्जैन (मध्यप्रदेश)*===
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