तलाश गगन की
?तलाश गगन की?
छटपटाता पंछी
तलाश गगन की है
बँधा पड़ा पिंजरे में,
पंख अविकसित हैं
उनींदी आखों में,
स्वप्न भी कुंठित हैं
“खुल जाये पिंजरा,
तो पंख हिला लूँगा
मैं विस्तृत गगन में,
बहुत ऊँचा उड़ूँगा”
चाह मन की ये
अकुलाहट बन बैठी,
बनी व्याकुलता
प्यासे नयन की है
छटपटाता पंछी
तलाश गगन की है
दाना पानी मिले यहाँ
राजसी जिन्दगानी है
खालीपन पर,भरा हुआ
जाने क्या चीज पानी है
“न चाहिए ऐसा कुछ
खर्च हुआ जो जाता है
सब्र करने वाला ही,
फल रसीला पाता है”
स्वयं को दिलासा दे
सब्र वह रखता है
पर भीतर भीतर ही
रहती एक चुभन सी है
छटपटाता पंछी
तलाश गगन की है
✍हेमा तिवारी भट्ट