तम्बाकू: एक भूरा जहर
31 मई विश्व तंबाकू निषेध दिवस पर कविता
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तम्बाकू: एक भूरा जहर-अशोक शर्मा
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आया प्रचलन अमेरिका से,
दुनिया भर बोया जाता है।
भारत में दूसरे नम्बर पर,
तम्बाकू पाया जाता है।
हो जाती है सुगंध की कमी,
किसी जब यज्ञ पूजा में,
तंबाकू ताजगी खातिर ,
तब सुलगाया जाता है।।
मगर देखो ये कैसा रूप ,
धारण कर लिया इसने।
तम्बाकू सुर्ती खैनी का धंधा,
बड़ा सा कर लिया जिसने।
धरा पर रूप धारण करके,
ये चूरन बनकर आया।
मुखों में हम सबके घाव,
कैंसर कर दिया इसने।।
बीड़ी सिगरेट जैसा उपयोग,
इसका धूम्रपानों में।
धुँआ बन जहर भरता है,
यह तो आसमानों में।
तम्बाकू हुक्का चिलम की ,
आदत बनकर देखो।
लगाता आग सीने में,
श्वशन के कारमानों में।।
लिखा हर पैक पर होता ,
तम्बाकू जानलेवा है।
फिर भी हम खाते हैं इसको,
जैसे सुंदर सा मेवा है।
समझ आता नहीं हमको,
मेधा चकरा सी जाती है।
बिके जानलेवा थैली में,
भला यह कैसी सेवा है।।
बह रही धार बर्बादी की ,
उसको मोड़ना होगा।
नासमझी की कड़ियों को,
मिलकर तोड़ना होगा।
रहना है जवाँ गर स्वस्थ ,
गर जीना है जीवन मस्त।
इस भूरे जहर को सुन लो ,
तब तो छोड़ना होगा।।
◆◆◆अशोक शर्मा ◆◆◆