तब होगा नव-वर्ष का अभिनंदन
कुछ बीत गया, कोई छूट गया
कुछ नया मिला, कोई रूठ गया
डोर समझ कर जिसे सम्हाला
एक धागा था जो टूट गया||
मान जाए रूठे, जुड़ जाए टूटे
छूटने वालो से हो जब बंधन ..
तब होगा नव-वर्ष का अभिनंदन ||
आक्रोशित है, उद्वेलित है नर
व्याप्त हुआ, क्यो इतना डर?
मन-मंदिर मे अंधकार कर
जला रहा क्यों बाहर के घर?
क्रोध को शांत करे वो अपने
मन उसका फिर हो जब चंदन…
तब होगा नव-वर्ष का अभिनंदन ||
एक फूल, मंदिर के अंदर
एक फूल, समाधि के ऊपर
रंग वही है गंध वही है
वो नही बदलता हो निष्ठुर
गिरगिट का खेल छोड़ कर के
मानव मिटाए सबका जब क्रंदन..
तब होगा नव-वर्ष का अभिनंदन ||