तप त्याग समर्पण भाव रखों
तप त्याग समर्पण भाव रखों
कटु वचनों का भी स्वाद चखों
रत्नाकर सा गहरा सहृदय रखों
विचलिन मन को भी बाध्य रखों
निष्ठुर पाषाण चक्षु ना रखना
अंतः कलश को नष्ट ना करना
बीज मंत्र जप कर्म तो करना
अशिष्टिकता से तुम ना डरना
प्रारब्ध मोती तो बन जाएगा
सुखद समय तो फिर आएगा
तन्मय होकर स्थिर रहना
रश्मि प्रभा सा दिनकर बनना
जयमाला सा अविरल बहना
नव प्रसून सा हंस मुख रहना
भक्ति भाव में स्थित रहना
धर्म कर्म से ना वंचित रहना