तन्हाईयाँ
शीर्षक – ” तन्हाईयाँ ”
इश्क में तेरे ग़ुम हूं मैं,
ख़ामोश और गुमसुम हूं मैं ।
नाम से तेरे इश्क मुकम्मल,
बिन तेरे गुमनाम हूं मैं ।।
तुमसे मोहब्बत की थी मैंने,
तुमको ही बस चाहा था ।
दुनिया की इस भीड़ में मैंने,
बस अपना तुमको माना था ।।
तन्हाइयों के ये स्याह अंधेरे ,
हर दम बढ़ते जाते हैं ।
जिंदा है कहने को बस हम,
पल पल मरते जाते हैं ।।
© डॉ. वासिफ क़ाज़ी
© काज़ीकीक़लम
28/3/2 , अहिल्या पल्टन , इक़बाल कालोनी
इंदौर , जिला – इंदौर , मध्यप्रदेश