‘तड़प’
नहीं आए अभी तक वो,
तड़प केसे बताऊंगी।
बिछी पलकें हैं राहोँ मेँ,
उन्हें अपलक निहारूँगी।।
लिखे जो ख़त, विरह मेँ थे,
उन्हें सारे दिखाऊँगी।
बही जो अश्रुसरिता थी,
उसी पर पुल बनाऊँगी।।
उलहने अब न दूँगी कुछ,
न ही उनको चिढ़ाऊँगी।
मना लूँगी हृदय से जब,
मैं उनके साथ जागूँगी।।
उठा जो ज्वार है उर मेँ,
न अब हरगिज़ छिपाऊँगी।
रीत है प्रीत की अप्रतिम,
उसे दिल से निभाऊँगी।।
भले हो स्वप्न, पर “आशा” से,
मन मेँ मुस्कुराऊँगी।
मिटेंगी दूरियाँ सारी,
मैं इतने पास आऊँगी..!
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