तज द्वेष
तज द्वेष मिटा कटुता मन शीलम।
भज नाम मुरार कटे दुख कीलम।।
दिन रैन निहारत राह पिया दृग,
कब त्रास मिटे मृग लोचन नीलम।।
उर में धँसते सुख कंटक से नित।
बिसरा दुख मानस का कर ले हित।।
अनुराग भरो मन मानुष जीवन।
परिवेश सजे हुलसे मन आँगन।।
नीलम शर्मा ✍️