*तजुर्बा*
दिलों से
ईर्ष्या, द्वेष, नफ़रत,
हटा कर तो देखो –
ज़िन्दगी का हर लम्हा खूबसूरत है,
मेरे तजुर्बे को
कभी आज़मा कर तो देखो –
जियो तो ऐसे,
जैसे –
हर लम्हा-लम्हा
एक एक ज़िन्दगी की मानिंद हो
और हर ज़िन्दगी पर
तुम्हारी पीढ़ियों को नाज़ हो –
सर पर तुम्हारे
हीरे-मोती का न सही
स्वाभिमान और संतोष का ताज हो –
फिर साँसों के बिखर जाने का
कभी अफ़सोस न होगा
और दिल-ओ-रूह को
यह अहसास होगा
मानो चंद घड़ियों में
सदी गुजार दी गई है –
ज़िन्दगी आधी-अधूरी नहीं
बल्कि पूरी की पूरी
मुहब्बत और शिद्दत के साथ
जी ली गई है ।