तजर्रुद (विरक्ति)
इस सरगर्मी -ए – माहौल से दूर हो जाना चाहता हूं ,
खुद को भुलाकर तन्हाइयों मे खो जाना चाहता हूं ,
इंसानियत के मुखौटे पहने ये चेहरे मुझे रास नहीं आते हैं ,
हमदर्दी की आड़ में खुदगर्ज ये अफराद मुझे नही भाते हैं,
मक्कारी ,फरेब और झूठ के दायरों में सच्चाई सिमट कर
रह गई है ,
दहशतगर्दी और हैवानियत के चंगुल में इंसानियत सिसकती रह गई है ,
किसी मसीहे का इंतज़ार अब बेकार है,
ज़ुल्म -ओ-जब्र में डूबी ज़िदगानी अब बेज़ार है।