तकदीर
जहाँ चले न ज़ोर कोई वह खेल है तकदीरों की,
यूं तो यहाँ पर हर कोई खेले, खेल तदबीरों की।
दिल के अरमान दिल में ही दब कर मर जाते है,
बुरी और खोटी किस्मत ! मेरे देश की हीरें की।
धड़के दिल साहिब का अपने भाइयों के लिए,
फिर क्यों बात करते हो आप टूटे हुए तीरों की।
नशा, ग़रीबी, बेरोज़गारी और गंदी राजनीती ने,
खराब कर दी है ज़वानी मेरे नौजवान वीरों की।
जनता के लिए कुछ नहीं, अपनों को देश लुटाते है,
क्या बात करूँ, इस देश को खाने वाले लीडरों की।
आज़ादी के बाद देख कर दुर्दश देश आज़ाद की,
देख कर रोती होगी आत्मा देश-भक्त शूरवीरों की।
जो मार सके न काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार को,
पंखडी बराबरी करते साधू-संत और पीर-फकीरों की।
दिल से न गिरा पाएं हो तुम नफ़रत की दीवारो को,
करनी क्या बात फिर सरहदों पर पड़ीं लकीरों की।
आम आदमी ना पड़े कभी मनदीप गंदी राजनीती में,
यह तो खेल है ‘ गिल धड़ाकीए’ राजे और वजीरों की I
मनदीप गिल धड़ाक