ढूॅ॑ढा बहुत हमने तो पर भगवान खो गए
अपनों में आज कैसे हम अंजान हो गए
सब जानते हैं हमको मगर बेनाम हो गए
रह गई धरी की धरी समझधारियां सभी
नासमझों की नजरों में हम नादान हो गए
अपनों में आज कैसे………..
जिनसे मिले उसी ने तवज्जो भी दी मगर
कुछ देर ठहरे उनके तो वो परेशान हो गए
अपनों में आज कैसे…………
ठहरे थे उनकी नजरों में दो पल के लिए ही
समझा उन्होंने बिन बुलाए मेहमान हो गए
अपनों में आज कैसे………….
बांटा है हमने बस प्यार के बदले में प्यार को
जानें क्यूॅ॑ हम पर इतनों के अहसान हो गए
अपनों में आज कैसे…………..
उगने लगी है नफरतें अब जिधर भी देख लो
महफ़िल तो क्या शहर ही सुनसान हो गए
अपनों में आज कैसे…………..
क्या-क्या कहूॅ॑ ‘ V9द’ अब रहने दो बात को
ढूॅ॑ढा बहुत हमने तो पर भगवान को गए
अपनों में आज कैसे……………