“ढिठाई”
“ढिठाई”
दिल यादें आदत जिन्दगी
हमने सबकी ढिठाई देखी है,
पर गरीबी जैसी कोई नहीं
जो लगती मौत सरीखी है।
आ ही जाती एक दिन
कैसो भी बगल बचाएँ,
जैसे काजल की कोठरी में
न जाने कहाँ दाग लग जाए?
“ढिठाई”
दिल यादें आदत जिन्दगी
हमने सबकी ढिठाई देखी है,
पर गरीबी जैसी कोई नहीं
जो लगती मौत सरीखी है।
आ ही जाती एक दिन
कैसो भी बगल बचाएँ,
जैसे काजल की कोठरी में
न जाने कहाँ दाग लग जाए?