“ढाई अक्षर प्रेम के”
प्रेम एक समर्पण है ,
ना कुछ लेना सिर्फ देना।
प्रेम एक अभिव्यक्ति है,
ना कुछ कहना समझ जाना।
प्रेम एक अनुभूति है,
स्वंय जान लेना।
प्रेम एक श्रद्धा है,
बस सम्मान ही देना।
प्रेम एक आस्था है,
जिसमें लीन हो जाना।
प्रेम एक विश्वास है,
जिसमे कभी शक ना होना।
प्रेम एक रंग है,
जिसमे रंग जाना।
प्रेम एक रस है ,
जिसमे डूब जाना।
प्रेम एक आस है,
एक प्रतीक्षा रहना।
प्रेम एक अटूट बंधन है ,
जो कभी ना टूटना।
प्रेम एक फूल है,
जो कोमल सा होना।
प्रेम एक दीपक है ,
जो प्रकाशित होना।
प्रेम एक सत्य है,
जो आंखों में उतर आना।
प्रेम एक धन है ,
जो कभी नही घटना।
प्रेम एक दर्शन है,
जो दिखाई नही देना।
प्रेम अनमोल हैं,
जो मोल न किया जाये।
प्रेम एक अमृत है,
जो जीवन दे जाए।
प्रेम एक रूप है,
जो बांटा न जाये।
प्रेम ऐसा रंग है
जो सब पर चढ़ जाए।
प्रेम एक शक्ति है,
जो कुछ भी कर जाए।
प्रेम एक संगीत है,
जो मन को लहराये।
प्रेम एक मीठा शहद है,
जो घुलता ही जाए।
प्रेम एक धड़कन है ,
जो सांसो में समा जाए।
प्रेम एक स्वर है,
जो गूँजता ही जाए।
प्रेम एक सागर है ,
जो गहरा होता जाए।
प्रेम एक गति है,
जो चलता ही जाए।
प्रेम एक परछाई है,
जो सदा साथ चलता जाए।
प्रेम एक अनंत है,
जिसका अंत न हो पाए।
प्रेम एक उपासना है,
जो वासना न बन पाए।
प्रेम एक पूजा है,
जो धर्म बन जाये।
प्रेम ऐसी चाहत है,
जो जीवन बन जाये।
ढाई अक्षर प्रेम का,
ढाई अक्षर प्रेम का।।
लेखिका:- एकता श्रीवास्तव।
प्रयागराज✍️