*डॉ. सुचेत गोइंदी जी : कुछ यादें*
डॉ. सुचेत गोइंदी जी : कुछ यादें
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वर्ष 2023 के प्रथम माह की शुरुआत में ही डॉ सुचेत गोइंदी जी के निधन का समाचार न केवल दुखी कर गया बल्कि बहुत सी पुरानी स्मृतियों को भी ताजा करने लगा ।
दशकों पहले आप रामपुर में राजकीय महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय की संस्थापक प्राचार्य बन कर आई थीं। यह उत्तर प्रदेश का पहला राजकीय महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय था । आपकी खादी निष्ठा, सादा जीवन और उच्च विचारों का संगम एक ऐसी त्रिवेणी प्रवाहित करता था जो बरबस आपकी ओर आकृष्ट करता था । सहज ही आप रामपुर के सार्वजनिक जीवन में उन लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन गईं, जो समाज को कतिपय उच्च आदर्शों के आधार पर संचालित होते देखना चाहते थे । आप अनुशासन-प्रिय थीं। इस नाते आपके निर्णयों में एक कठोरता दिखाई पड़ती थी। प्रशासनिक पद पर बैठने के बाद सिद्धांतों से समझौता न करने वाला व्यक्ति ऐसी ही छवि लेकर जीता है । लेकिन जिन्होंने आप को निकट से देखा है, उन्हें मालूम है कि आपकी आत्मीयता और प्रेम सबके साथ कितना प्रगाढ़ होता था । आप विद्वत्ता की भंडार थीं। भाषण-कला में निपुण थीं। श्रोताओं को मंत्रमुग्ध करने में आपकी क्षमता अपार थी । लेखनी की धनी थीं। कुल मिलाकर सार्वजनिक जीवन में बहुआयामी व्यक्तित्व की स्वामिनी थीं। अनेक समारोहों में यदा-कदा आपसे भेंट हो जाती थी । आपका व्यक्तित्व ही कुछ ऐसा था कि भुलाया नहीं जा सकता ।
दो संपर्क की घटनाएं याद आती हैं । एक वह, जब 13 फरवरी 1989 में आपने राजकीय महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय, रामपुर में गांधी जी की पोती को व्याख्यान के लिए आमंत्रित किया था । मैंने उसकी विस्तृत रिपोर्ट तैयार की थी, जो सहकारी युग हिंदी साप्ताहिक रामपुर में प्रकाशित भी हुई थी । दूसरी घटना आपका बहुमूल्य पत्र प्राप्त होने से संबंधित है । मैंने आपको प्रोफेसर मुकुट बिहारी लाल जी की जीवनी-पुस्तक डाक से भेजी थी और आपका कृपापूर्ण उत्तर लौटती डाक से प्राप्त हो गया । पत्र में आपके जीवन की उपलब्धियों की एक झलक अंकित थी । यह सब आपकी योग्यता और परिश्रम का उचित पुरस्कार था, जो आपको मिलना ही चाहिए था ।
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(1)
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प्रस्तुत है 11 अक्टूबर 2012 का आपका पत्र
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डॉक्टर (कुमारी) सुचेत गोइंदी
डी. फिल.
शिक्षक श्री उत्तर प्रदेश शासन
संस्थापक प्राचार्य प्रथम शासकीय महिला स्नातकोत्तर, उत्तर प्रदेश
पूर्व सदस्या उत्तर प्रदेश शिक्षा सेवा आयोग
सदस्य -लोक सेवक मंडल सलाहकार समिति, इलाहाबाद
सदस्य -प्रांतीय सलाहकार समिति कस्तूरबा गांधी स्मारक ट्रस्ट उत्तर प्रदेश
अध्यक्ष नागरिक सद्भाव मंच जिला इलाहाबाद
अध्यक्ष लोक सेवक मंडल महिला प्रकोष्ठ उत्तर प्रदेश, इलाहाबाद
सदस्य विमेंस एडवाइजरी बोर्ड इलाहाबाद विश्वविद्यालय
चेयर पर्सन -विमेंस कमेटी -हायर एजुकेशन उत्तर प्रदेश शासन
कमल गोइंदी भवन
118, दरभंगा कॉलोनी, इलाहाबाद 211002
टेलीफोन (0 5 32) 24 60671
दिनांक 11 – 10 – 2012
प्रिय भाई रवि प्रकाश
नमस्कार
आप की पुस्तकें प्राप्त हुईं। संयोग से आज जयप्रकाश नारायण जी का जन्म दिवस है । हम सब याद कर रहे थे कि आपकी पुस्तक मुकुट बिहारी जी के बारे में प्राप्त हुई । अनेक धन्यवाद । मेरी महती इच्छा रही है कि प्रत्येक जिले के सुधी जन अपने यहां के स्वतंत्रता सेनानियों की संक्षिप्त जीवनियॉं लिखें प्रकाशित करवाएं, जिससे प्रत्येक नगर ग्राम अपने तपस्वियों राष्ट्र प्रेमियों पर गर्व कर सके और भावी पीढ़ियां प्रेरणा प्राप्त करें और इस देश को नए साम्राज्यवाद बहुराष्ट्रीय कंपनियों के राक्षस के जबड़ों में जाने से बचाने में अपनी भूमिका प्रयोग करें। आपने यह पुस्तक लिख कर एक उत्तम कार्य किया है।
रामपुर के ही श्री सुरेश राम भाई थे। 1942 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से मैथ्स में फर्स्ट एम.एससी. कर ब्रिटिश विरोध 1942 करते हुए जेल यात्राएं सहीं और जीवन पर्यंत गांधी विनोबा का कार्य किया और लगभग 100 पुस्तकें भी लिखी हैं । उनके बारे में भी आपकी लेखनी चलनी चाहिए । सहकारी युग निरंतर चल रहा होगा । श्री महेंद्र भाई जी को प्रायः याद कर लेती हूं । रामपुर ने मुझे जो उसने आदर दिया, वह मेरी पूंजी है ।
सबको मेरे प्रणाम। मेरी 7 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं । आठवीं का लेखन चल रहा है। जब प्रभु पूर्ण करावें। दो पुस्तकों के दूसरे संस्करण भी आ चुके हैं। सर्व सेवा संघ के बुक स्टॉल पर देख सकते हैं ।
कभी इलाहाबाद आना हो तो अवश्य दर्शन दीजिए ।
सद्भावी
बहन
सुचेत गोइंदी
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(2)
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सहकारी युग हिंदी साप्ताहिक रामपुर अंक 18 फरवरी 1989 में प्रकाशित रिपोर्ट “आवाज गॉंधी की पोती की गूॅंजी राजकीय महिला महाविद्यालय में”
बरसों बाद 13 फरवरी की दोपहर 12:30 बजे रामपुर में एक हस्ती को अपने बीच पाया, जो राजनीति की चकाचौंध से दूर थी, पर जिसने भारत के सबसे बड़े राजनेता की विरासत पाई है। राजकीय महिला महाविद्यालय, रामपुर के सभागार में गांधी की पोती और चक्रवर्ती राजगोपालाचारी की धेवती श्रीमती तारा बहन को सुनना एक ऐसी सुखद अनुभूति थी जिसका स्पंदन मन और मस्तिष्क लंबे समय तक करते रहेंगे । सहसा देखें तो नहीं लगता कि यह गांधी जी की पोती होंगी । लगता था कि गांधी जी की पोती कोई कस्तूरबा जैसी दिखने वाली वयोवृद्ध महिला होंगी। पर तारा बहन किसी आधुनिका से कम नहीं लगीं। पचास साल से कुछ कम उनकी उम्र रही होगी, मगर लगता था अपने संयम और रखरखाव से उन्होंने उम्र के कम से कम एक दशक पर विजय अवश्य प्राप्त कर ली। परिणामत: छरहरा बदन, हरे-काले रंग की आकर्षक साड़ी, उसी से मैच करती हरे रंग की माथे की बिंदी, कंधों पर सलीके से ओढ़ा गया शॉल, नपे-तुले कदम, होठों पर सदा तैरती मंद-मंद मुस्कान, पवित्रता से अभिमंडित व्यक्तित्व, शालीनता और सौम्यता की प्रतिमूर्ति तारा बहन !
उन्हें देखा तो लगा कि अपने घर-परिवार की किसी बहन-भाभी को देख-सुन रहे हैं। अरे ! यह तो अति साधारण हैं। हमारे जैसी हैं । हमारे बीच की-सी हैं। कहां है उनका असाधारणत्व ! बोलती थीं तो जैसे समझा रही हों। अहंकार-शून्य स्थिति यही तो होती है । मैंने कहा, यही तो गांधी की विशेषता थी । भीड़ में एक, मगर भीड़ से अलग भी। तारा बहन गांधी जी की पोती-भर नहीं हैं। वह ऐसा कहलाने का दर्जा भी रखती हैं ।
डॉ. शन्नो देवी अग्रवाल द्वारा संचालित इस व्याख्यान-समारोह में महाविद्यालय की प्राचार्य डॉ सुचेत गोइंदी ने अपने स्वागत भाषण में ठीक ही कहा कि गांधी की विरासत उनके बेटे पोतों में नहीं है, सारे देश में है । परिवारवाद के खिलाफ गांधी ने असली युद्ध किया । अपने बेटों को अपना राजनीतिक वारिस बनने का अधिकार नहीं दिया। गांधी इस बिंदु पर बड़े होते हैं। पर उन्होंने संस्कार दिया अपने परिवार को । तारा बहन उस गांधी संस्कार की विरासत की वाहक हैं। संस्कार, जो उन्होंने बा और बापू की गोद में बैठ कर पाए हैं । तभी अस्सी साल का बूढ़ा जब सुनता है कि तारा बहन गांधी जी की पोती हैं, तो भाव विह्वल होकर किले की सड़क पर कह उठता है -डॉक्टर गोइंदी बताती हैं- कि तारा बहन जी! आप मेरे सिर पर हाथ रख दीजिए। यह गांधी को न देख पाने की अनबुझी प्यास है, जिसे हर कोई उनकी पोती को देखकर-आशीष पाकर प्राप्त करना चाहता है ।
तारा बहन प्रायः कविता में अपनी बात कहती लगीं। अपनी रामपुर यात्रा के मध्य मार्ग के दोनों ओर के ग्रामीण परिवेश का दृश्य और खेतों का चित्र उनकी आंखों में बसा रहा । बाजारों का माहौल भी उन्हें याद रहा । तभी तो वह कह उठीं:
मैंने देखे सरसों के खेत
दूर क्षितिज तक फैले
बाजार-जैसे चहल-पहल भरे मेले
अगर कविता है, तो तारा बहन की वाणी में विद्यमान है । जब वह बच्ची थीं, अपनी दादी कस्तूरबा के साथ बहुत घूमीं-फिरीं। गांधी जी की यादें उन्हें ताजा हैं। बापू का दरवाजा सबके लिए खुला था । उनके लिए कोई पराया नहीं था । गांधीजी गंभीर विचारक थे, मगर बहुत हंसोड़ भी थे । बच्चे उन्हें बहुत प्रिय थे। वह बच्चों में बच्चे जैसे थे। एक और खूबी गांधीजी मे थी -तारा बहन बताती हैं- कि वह हर व्यक्ति को उसके उपयुक्त काम देते थे ताकि कार्य का विभाजन सही हो सके और कार्य सिद्धि असंदिग्ध रीति से संभव हो सके।
गांधीजी अपनी राय किसी पर थोपते नहीं थे । उनके बच्चे कैसे हों, बड़े होकर क्या बनें -यह गांधीजी ऊपर से तय नहीं करते थे । तारा बहन बताती हैं, एक बार उन्होंने बापू से पूछा कि मैं बड़ी होकर क्या बनूॅं ? गांधीजी ने कहा कि पहले पढ़ो-लिखो-घूमो-समझो, फिर जो उचित समझो फैसला करना । यह था गांधीजी का तरीका । बहुत छोटी-छोटी बातों पर गांधीजी ध्यान देते थे । तारा बहन के लेख पर गांधी जी का ध्यान जो एक बार पड़ा तो तुरंत उन्हें पत्र लिखा कि अपना लेख सुधारो। अक्षर ठीक से बनाया करो। तारा बहन बताती हैं, बापू बुनियाद से जुड़े व्यक्ति थे ।
खादी गांधी जी के जीवन-कर्म का मूल मंत्र है -तारा बहन के व्याख्यान का केंद्रीय विषय यही था । खादी आगे बढ़े, यह गांधी जी का मिशन था । यही हमारा ध्येय होना चाहिए। खादी का अर्थशास्त्र ही भारत की व्यवस्था में सुधार ला सकता है -तारा बहन को विश्वास है । महाविद्यालय की छात्राओं को विशेष रूप से समझाते हुए उन्होंने जोर देकर बार-बार कहा कि खादी ही औरत की इज्जत है, नारी का स्वाभिमान है, खादी ही भारतीयता की पहचान है । उनका आह्वान है कि हर भारतीय दुल्हन खादी में सजा करे। खादी घर-घर में पहुंचे । एक बार खादी अपनाइए, आप खादी से प्रेम करने लगेंगी -बहनों से उनका विशेष आग्रह रहा । खादी भेदभाव मिटाएगी, खादी स्वाबलंबन की भावना पहुंचाएगी, खादी सस्ती कीमत में समानता के आधार पर घर-घर में एकात्मता की ज्योति-शिखा लहराएगी । खादी जब मन को भाती है, तो छोड़ने को दिल नहीं चाहेगा। मेरा लड़का लंदन से आता है, मगर खादी के कपड़ों की उसकी मांग बराबर रहती है -वह बताती हैं । दरअसल खादी हमारी रचनात्मकता की वाहक है। हमारी संस्कृति के सनातन प्रवाह की अभिव्यक्ति है । पर केवल भावना से खादी आगे नहीं बढ़ेगी, तारा बहन स्वीकारती हैं।
यद्यपि वह इस तथ्य पर ज्यादा रोशनी नहीं डालतीं और राजनीति से सर्वथा अछूती रहकर वर्तमान खादीधारी माहौल का खादी-भावना पर प्रभाव का विश्लेषण नहीं करतीं, तथापि वह चाहती हैं कि अब खादी एक फैशन की चीज हो जाए और युवक-युवतियों की प्रिय पोशाक बन जाए ।
तारा बहन खादी के प्रसार को समर्पित एक ऐसी महिला हैं, जो गांधी जी के रचनात्मक कार्यक्रमों की विरासत की सच्ची वाहक हैं । यद्यपि लोगों को खादी के कपड़े पहनाने भर से सामाजिक प्रभाव-परिवर्तन की उनकी इच्छाओं के पूर्णीकरण पर अनेक प्रश्न लग सकते हैं, तो भी गांधी का रक्त उन में बह रहा है और निरर्थक नहीं बह रहा है। समग्र रचनात्मकता के साथ गांधी के जीवन मूल्यों-सपनों-आदर्शो से उनके वारिस जुड़े हैं, यह एक बड़े संतोष और सुख की बात है।
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(सहकारी युग हिंदी साप्ताहिक अंक 18 फरवरी 1989)
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लेखक : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 99976 15451