डॉ. श्वेता फैनिन का नारीवाद : संदर्भ और सम्बन्ध
शीर्षक – ‘डॉ. श्वेता फैनिन का नारीवाद : संदर्भ और सम्बन्ध’
विधा – संस्मरणात्मक आलेख
संक्षिप्त परिचय – ज्ञानीचोर
शोधार्थी व कवि साहित्यकार
मु.पो. रघुनाथगढ़, सीकर राजस्थान
पिन – 332027
मो. 9001321438
जब जीवन को गौरवान्वित करने के प्रसंग मेरे सामने उठते है तो कई तरह के युगानुकूल इतिहास संदर्भ प्रसंग मिल जाते है। परन्तु जब अपने परिचित जन में से किसी में मैं यही प्रसंग खोजने का प्रयास करता हूँ तो एकमात्र नाम है ‘डॉ.श्वेता फैनिन’
‘आज के संदर्भ की सशक्त एकमात्र कड़ी वो महिलाएँँ जो शारीरिक, मानसिक, आर्थिक रूप से किसी पर आश्रित नहीं है। न पुरुष को पराजित करना चाहती और न सामाजिक व्यवस्था को विकृत करती। बदलते सामाजिक स्वरूप में अपना योगदान देकर सामाजिक विकास की धारा को नई ऊँचाइयों पर ले जाने में अपनी सशक्त भूमिका का निर्वाह करने में तत्पर है ; उन्हीं महिलाओं का जीवन नारी समाज और राष्ट्रीय जीवन के उपयोगी है।’ ये सारी विशिष्टता डॉ.श्वेता फैनिन के चरित्र में नैसर्गिक है। भावों और विचारों की कृत्रिमता से जीवन कोसों दूर है। जो है स्वाभाविक है।
‘उनके विचारों में नारीवाद न सिर्फ एक आंदोलन और विचारधारा है बल्कि नारीवाद को वो प्रकृति से जोड़कर देखती है। नारी और प्रकृति और दूसरे के समार्थी पर्याय है न कि पूरक। नारीवाद को पूर्णतया प्रकृति से पोषित मानती है।’
सौम्य और मधुर स्वभाव विकसित करना शिक्षा का महत्वपूर्ण कार्य मानते है। शिक्षा से जुड़े तकरीबन बीस वर्षों के इनके अनुभवों का मूल्याकंन करना सहज कार्य नहीं है। शिक्षा के कई सामाजिक पड़ाव इन्होंने देखें ; साथ में बदलती जनरूचि और स्वभाव को नये संदर्भो में देखा। ‘सहयोग और विरोध न करना’
इनके व्यवहारपरक जीवन का अटूट हिस्सा है। ज्ञान आधारित जीवन को ही प्राथमिकता देनेवाली महामानवी है।
जहाँ एक ओर आज सामाजिक सम्बन्ध आर्थिक स्थिति पर निर्भर होते जा रहे है वहीं डॉ. श्वेता फैनिन जी आर्थिक स्थिति को जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका में नहीं मानते। ये अर्थ को सिर्फ साधनात्मक रूप में ही स्वीकार करती है साध्य रूप में नहीं। ये नैसर्गिकता इनको प्रकृति के सौम्य सुकुमार साधु अपने पति ‘आर.सिंह जी’ से एक सीमा तक मिली।
स्त्री-शिक्षा के प्रसार में ही इनका जीवन समर्पित है। चेहरे पर सदा निर्मल गंगा की शीतल लहरों सी मुस्कान से हर छात्रा का अभिनंदन करती रहती है।
सकारात्मक ऊर्जा का एक बहता स्रोत है जिसमें हर कोई डूबकर तैर सकता है। इनके व्यक्तित्व का सबसे आकर्षक पहलू इनमें उपस्थित सकारात्मक ऊर्जा का अक्षय स्रोत है। जो व्यक्ति सहयोगी और विरोध न करने वाला होगा उनमें सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह सबसे ज्यादा होता है। हर समय सहयोग को तत्पर रहने से इनकी कार्यशैली विलक्षण बन पड़ती है।
पम्परागत और नवीन सांस्कृतिक सामाजिक संस्कार को लेकर भी बहुत स्पष्ट है। ये मध्यमार्गी न होकर दोनों को जीवन के विकास की कसौटी पर परख पर अपनानें पर बल देती है।
बहुज्ञता के साथ-साथ सादगी इनकी विलक्षणताओं में है। सहज ज्ञान के आधार पर असाधारण जीवन व्यतीत करने पर बल देती है। सीधी बात को सीधी कहने में विश्वास करते है। आईडिया जो एक तरह की प्रपंच बुद्धि है उसे स्वीकार नहीं करते।
स्पष्टवादी ही इनको सबसे अलग रखती है। कार्यस्थल को जन्मभूमि सा स्नेह कर अपना सारा उत्साह उसी को समर्पित कर देती हैं।
स्वाभिमान जो एक स्त्री का सबसे प्रिय और अमूल्य आभूषण है। यहीं प्रवृत्ति इनमें सबसे मुखर है। इनसे जो भी मिला इनके सहज स्वभाव ने सबको प्रभावित किया। क्षमा करना इनकी पूजा है। जीव दया और प्रकृति संवाद इनके जीवन का हिस्सा है।
आलोचना को जीवन का शाप मानते है और आलोचक को व्यवहारिक पाखंडी जिनका तर्क ही जीवन के विकास का बाधक तत्व है।
सामान्य महिलाओं की तरह होते हुए भी असाधारण व्यक्तित्व की धनी है।
व्यवहारिक मनोविज्ञान की विशेषज्ञता से इनकी मानसिक शक्ति छात्राओं में नवीन ऊर्जा का संचार करती है।
किसान परिवार में उत्पन्न डॉ. श्वेता फैनिन जी आज भी किसानी करती है पशुपालन करती है। ग्राम्य जीवन ही सबसे प्रिय है। शहरी आपाधापी इनकी रूचि से दूर है। वर्तमान में बुजुर्गों को अकेलेपन का दंश झेलना पड़ रहा है ; यह दंश फैनिन जी को अन्तरतम की गहराइयों तक कचोटता है। बुजुर्गों के प्रति इनका सहज स्नेह होने के साथ नैसर्गिक सहानुभूति भी है। हर किसी की हर संभव सहायता करना इनका उत्कृष्ट गुण है।
अपने को कभी भी विशिष्ट बनाने का प्रयास नहीं करते बल्कि साधारण बने रहकर ही जीवन को गौरवशाली मानती है। इनका मानना है साधारण से विशेष बनने पर सामान्य जन से सम्बन्ध नहीं रह पाता तथा कई भ्रमात्मक आवरण जीवन को विनाश की ओर ले जाते है। विश्वास ही इनकी सबसे बड़ी पूँजी है। छल-कपट,विश्वासघात जैसी अनैतिकता इनके मानसिक धरातल पर नहीं पनपती।
इनके जीवन का मूल मंत्र –
‘नारी नित्य नमनीय, कर्म ही उसका कमनीय।’