*डॉ मनमोहन शुक्ल की आशीष गजल वर्ष 1984*
डॉ मनमोहन शुक्ल की आशीष गजल वर्ष 1984
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सहकारी युग हिंदी साप्ताहिक रामपुर दिनांक 13 अक्टूबर 1984 पृष्ठ चार पर चिरंजीव रघु प्रकाश (वर्तमान के सुविख्यात बच्चों के सर्जन, मुरादाबाद) के नामकरण-संस्कार के अवसर पर राजकीय रजा स्नातकोत्तर महाविद्यालय, रामपुर के हिंदी प्रोफेसर डॉ मनमोहन शुक्ल जी ने बालक को आशीष के रूप में एक कलात्मक कविता भेंट की। बालक का जन्म 21 जुलाई 1984 को हुआ था। नामकरण अक्टूबर माह में होने के कारण उस समय यह कविता डॉक्टर मनमोहन शुक्ल जी ने भेंट की। इसमें बालक रघु प्रकाश के पिता रवि प्रकाश और पितामह श्री राम प्रकाश सर्राफ के नाम का उल्लेख भी अत्यंत सुंदरता के साथ किया गया है। गजल की हर पंक्ति के प्रथम अक्षर को शुरू से आखिर तक मिलाने पर राम रवि रघु प्रकाश को सआशीष वाक्य बनता है।
सहकारी युग हिंदी साप्ताहिक के संपादक डॉ रघु प्रकाश के नाना श्री महेंद्र प्रसाद गुप्त जी ने निम्नलिखित भूमिका के साथ अखबार में डॉक्टर मनमोहन शुक्ल जी की आशीष-गजल प्रकाशित की:-
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सहकारी युग 13 अक्टूबर 1984 (यथावत)
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डा० मनमोहन शुक्ल ने अपना आशीष प्रेषित किया है सहकारी-युग परिवार के नवोदित सदस्य श्री रवि प्रकाश को, उनके नवजात पुत्र चि० रघु के नामकरण संस्कार के अवसर पर और साथ ही चि० रघु के पितामह श्रीयुत रामप्रकाश सर्राफ को अपनी कलात्मक गजल के माध्यम से:-
नामकरण-आशीष (गजल)
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रा- रात-दिन होकर प्रफुल्लित ‘रघु’ चमकता जाय ।
म – मधुर बेला में स्वजन के हृदय को हरषाय !
र रवि प्रफुल्लित कीर्ति ध्वज ले राम के सम आय
वि विनय की प्रतिमूर्ति ‘रामप्रकाश’ युत घर पाय।
र – रघु तिलक-सा ही बनेगा एक ही कुलगीत
घु – घुला कर रस रश्मियों को भावना में आय
प्र – प्रगल्भा यह प्रकृति भी जिसका करे श्रंगार
का कार्तिकेय समान ‘रघु’ ऐसा विकसता जाय
श – शलभ सम प्रेमातुरों के प्राप्त कर आशीष
को – कोटि शत वंशानुगत पल्लव उठे लहराय ।
स- सर्वदा हो प्रेम का ऐसा घना साम्राज्य,
आ – आकलन की बांह में फिर भी न प्रेम समाय
शी – शीश ऊंचा धरा पर कर कर्म का संधान !
ष – -षडानत- सी शक्ति पा कर सतत बढ़ता जाय