डिप्रेशन का माप
पचास साल की उम्र होते ही शिवदयाल डिप्रेशनग्रस्त हो गए। उनकी पत्नी उमा उन्हें काउंसलर के पास ले गई। काउंसलर ने सारी बातें सुनने के बाद कहा कि शिवदयाल जी, आप जिस स्कूल में पढ़े हैं, वहाँ से प्रवेश पंजी लेकर अपने साथियों के नाम लिखो और उनकी वर्तमान स्थिति की जानकारी प्राप्त कर मुझसे दो माह बाद मिलो।
शिवदयाल ने प्रयास करके रजिस्टर प्राप्त किया। उस रजिस्टर में कुल 100 नाम थे। उसे एक डायरी में नोट किया। फिर शिवदयाल ने दो महीने तक बड़ी मशक्कत करके उनके बारे में जानकारी एकत्रित की।
प्राप्त जानकारी के अनुसार उनमें से 20% लोग मर चुके थे, 18% लड़कियाँ विधवा तथा 7% तलाकशुदा या सेपरेटेड थी। 15% नशेड़ी निकले, जो बात करने लायक भी नहीं थे। 8% अति गरीब निकले, 6% कैंसर, लकवा, डायबिटीज, अस्थमा या दिल के रोगी निकले। 3% का एक्सीडेंट में हाथ-पाँव या रीढ़ की हड्डी में चोट के कारण बिस्तर पर थे। 2% के बच्चे पागल या निकम्मे थे, 2% लोग जेल में थे और 1 व्यक्ति 50 की उम्र में सैटल हुआ था, इसलिए अब शादी करना चाहता था। 1 व्यक्ति अभी भी सैटल नहीं हुआ था, किन्तु दो तलाक के बावजूद तीसरी शादी के फिराक में था।। 17% लोगों का तो पता ही नहीं चल सका।
काउंसलर ने पूछा कि शिवदयाल जी, अब बताओ डिप्रेशन कैसा है?
अब तक शिवदयाल को समझ में आ चुका था कि उसे कोई बीमारी नहीं है, वो भूखा नहीं मर रहा है। दिमाग एकदम सही है। कोर्ट-कचहरी-अस्पताल का कोई चक्कर नहीं है। उनके बीवी-बच्चे अच्छे और स्वस्थ हैं, वह खुद भी स्वस्थ हैं। फिर उन्होंने महसूस किया कि वास्तव में दुनिया में बहुत दुःख है, जबकि औरों की तुलना में मैं बहुत सुखी और सौभाग्यशाली हूँ।
यह जान लीजिए कि आप मुकेश अम्बानी बने या न बनें, लेकिन यदि सर पर छत है, दो वक्त इज्जत की दाल-रोटी मिल रही है, बीमार होकर बिस्तर पर नहीं हैं, कोर्ट-कचहरी पुलिस और अस्पताल का लफड़ा नहीं है तो इस सुन्दर जीवन के लिए अपने इष्टदेव का धन्यवाद कीजिए। लेकिन यदि अब भी आपको लगता है कि आप डिप्रेशन में हैं, तो मैट्रिक की प्रवेश पंजी लेकर आप सर्वेक्षण आरम्भ कीजिए।
मेरी प्रकाशित 45वीं कृति : दहलीज़ (दलहा भाग-7)
लघुकथा-संग्रह से…
डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
साहित्य वाचस्पति
हरफनमौला साहित्य लेखक।