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24 Jul 2019 · 1 min read

डर

डर

माँ मुझको बङा डर लगता है
काँटों से भरा डगर लगता है

गर कन्या होना गुनाह नहीं माँ
तो क्यों घूरता शहर लगता है

हर एक नजर मुझे नोचना चाहे
कत्लगाह एक एक घर लगता है

कदम कदम पे हैं कामुक भेङिए
मुश्किल जीवन का सफर लगता है

बेवफा से हैं सब के सब रिश्ते
अविश्वसनीय हर नर लगता है

सिल्ला क्षीण हो है गई संवेदना
अब एक एक दिल पत्थर लगता है

माँ मुझको बङा डर लगता है
काँटों से भरा डगर. लगता है

-विनोद सिल्ला

Language: Hindi
214 Views
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