“डर नहीं है”
कूद पड़ा हु “मैदानों” में हार जीत का ‘डर’ नही हे
केहदो जाके “दुश्मनो” को ये तुम्हारा “घर” नहीं हे
अपनी “रक्षा” करनी खुद अच्छे से हम जानते हे
घर का ‘भेदी” कोण हे हम “बख़ुबी” पहचानते हे
देशकी खतिर काम आजाये’ मेरा ये ज़ुनून वही हे
कूद पड़ा हु “मैदानों” में हार जीत का ‘डर’ नही हे
अंगेजो की थी हकूमत मिल चुनोती दी सबने
मुगल’ को भी मार भगाया एक हुवे सब अपने
सुभाषचंद्र बोस ने मांगा ले लो मेरा ‘खून” वही हे
कूद पड़ा हु “मैदानों” में हार जीत का ‘डर’ नही हे
@अंकुर…..