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2 Dec 2016 · 1 min read

डंडा

लघुकथा

डण्डा

*अनिल शूर आज़ाद

” आज फिर गलत लिखा..बेवकूफ कहीं का! चल बीस बार इसे अपनी कापी में लिख..”
” नही लिखूंगा!” उसके स्वर की कठोरता देखकर, मै दंग रह गया। मैंने पूछा ” क्यों नही लिखोगे?”
‘” पिताजी रोज दारू पीकर मारते हैं..कहते थे,अब एक महीना पूरा होने से पहले..नई कॉपी मांगी तो बहुत मारूंगा..” कहते हुए डण्डा खाने के लिए अपने नन्हे हाथ उसने आगे कर दिए।
मै उसकी डबडबाई आंखों में झांकता रहा। मेरा उठा हुआ हाथ जाने कब का नीचे ढरक गया था।

Language: Hindi
606 Views
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