ठहराव नहीं अच्छा
ठहराव नही अच्छा ‘मनवा’,
सम्भव है, पुनः छले जाओ।
स्मृतियाँ साथ न छोड़ेंगी,
चाहे तुम कहीं चले जाओ।
पर तुमने कहाँ मानी ‘मनवा’,
झट द्वार झरोखे सब खोले।
औ’ मधुर तान सी, बह निकले,
बिन सोचे समझे और तोले।
यादों बातों से भरी हुई,
लो, ‘गठरी’ आज बंधी फिर से।
अश्रु के जल से सजी हुई,
‘दो सखियाँ’ आज खड़ी फिर से।
अब टीस हृदय की छुपती नही,
अश्रु भी, बहना सीख गये।
होठों को सी डाला फिर भी,
नैना सब कहना सीख गये।
ना टूटेगा अब मौन कभी,
ना कह पाऊँ हिय शूल कभी।
चटकन भीतर इतनी हो जब,
क्या ‘कुछ’ पाऊँगी भूल कभी।
‘तुम’ भीतर कितना ही सिसको,
मुख पर दुःख छाप अबीरा सी।
मधु स्मृतियों से भीगी मै,
लो भयी दीवानी मीरा सी।