टूटे दिल की बात
दिन तो बहुत हो गए उस दिन को,
पर याद तो होगा ही तुम्हे वो हसीं पल,
कही थी जब बात मैंने अपने दिल की,
सुनकर हुई होगी तेरे दिल में भी हलचल।
सजाये थे सपने मैंने देखकर तुमको जब,
करके जज्बातों को काबू,
स्वीकारा था मैंने अपने प्रेम को तब।
आशाएं बहुत थी निराशा की जगह न थी,
दिल में डर तो था थोड़ा सा पर ,
तेरे इंकार की लगती कोई वजह न थी।
बिखर सा गया था मै जमीं पर ऐसे,
टूटे हुए मोतियों की कोई माला,
या छूट के टहनी से पत्ता अलग हो जैसे।
बड़ा मुश्किल हुआ तेरा इंकार करना स्वीकार,
हिम्मत न हुई कुछ कहने की,
बेचैनी का खंजर कुछ यूँ था दिल के पार।
क्या हुआ जो नहीं किया मैंने और प्रयास,
जैसे आगे पीछे चक्कर लगाते आशिक,
क्यों नहीं देखा तुमने सच्चाई जो थी मेरे पास।
काश तुमने भी थोड़ा महसूस किया होता,
मेरे प्रेम का समर्पण,
तो शायद दिन रात तेरे लिए मै न रोता।
होता साथ अपना भी इस पल,
हँसते खिलखिलाते एकदूजे संग,
हमारा भी होता तब एक हसीं कल