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12 Jun 2018 · 1 min read

टूटा तारा

टूटा तारा
मैं टूटा तारा आसमाँ का
मेरा कहीं कोई ठौर नहीं।
मैं मंजर विहीन एक ठूँठ पेड़
मुझपे आते कभी बौर नहीं।
वो आये,आकर चले गए।
हम नेह लगाकर छले गए।
मैं दर-दर चौखट सा पड़ा रहा।
जर्जर, मरघट सा मरा रहा।
जाने कितने पद-दलन हुये
इसका मुझे कोई गौर नहीं।
घट, घट, पनघट पे भरा नहीं,
वीरान हिय-पट हरा नहीं,
अखियाँ बदरा सा सरस रहे।
उर अतृप्त, पर तरस रहे।
हो विपन्न या सम्पन्न,मन
जीवन गति कोई और नहीं।
मैं टूटा तारा आसमान का
मेरा अब कोई दौर नहीं।
-नवल किशोर सिंह
#नवलवाणी

Language: Hindi
417 Views
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