टीस बहुत हैं प्रश्न बहुत हैं
टीस बहुत हैं प्रश्न बहुत हैं
आज भी कितने प्रश्न खड़े हैं मेरे सामने
प्रश्नों का बवंडर सा उठता हैं और
झकझोरता हैं मुझे मेरे अंतर्मन तक
आखिर क्यों होता हैं ये सब न चाहते हुए भी
हम सब ही तो ये करने वाले, कोई अलग नहीं हैं
क्यों आज भी बेटा बेटी का भेद नजर आया
घर में दो बेटों के नाम से ही माँ ने सम्बोधन पाया
क्यों मेरे नाम की पुकार नहीं की किसी ने भी
क्यों माँ ने भी ये स्वीकारा
टीस बहुत हैं प्रश्न बहुत हैं…
क्यों बेटों ने ही वंश बेल बढ़ाने का ताज पाया
क्या उसमें किसी को भी बेटी का साथ नज़र नहीं आया
क्यों बेटा ही करें अन्तिमसंस्कार की क्रिया
क्यों बेटा ही पगड़ी पहने माँ बाप की मौत पर
क्यों आँखों का तारा बेटा ही कहलाये
क्यों भाई बिन बहन अभागी कहलाए
क्यों बेटा ही बुढ़ापे का सहारा कहलाए
क्यों आखिर क्यों कब तक हम सहन कर पाए
क्यों हम इसको स्वीकारें
टीस बहुत हैं प्रश्न बहुत हैं
मन में उठता बवंडर रूप लेता जा रहा है भयंकर
कहीं तो कभी तो प्रश्नों का मिलेगा कोई उत्तर
क्यों जन्म से बेटी को बोला जाता पराया धन
जन्म तुमने दिया तो क्यों बोलते हो पराई
ससुराल में बोल जाता तू तो पराए घर से है आई
क्यूँ न बोले जब जन्म देने वालो को ही समझ न आई
तभी आज कुछ मेरी बेटियों को सब समझ में आया
तभी तो पढ़लिख कर आज अपना नाम बनाया
क्यों हमने कुरीतियों को अपनाया
टीस बहुत हैं प्रश्न बहुत हैं
डॉ मंजु सैनी
गाज़ियाबाद
घोषणा:स्वरचित रचना