टविन टोवर
dr arun kumar shastri – ek abodh balak – arun atript
** टविन टोवर **
क्या मिला तुमको मुझको गिरा कर
दोनों जहाँ या रुपया या पैसा या शोहरत
रुपया तो आनी जानी वस्तु है ये रुकती नही
किसी की दासी नहीं हमेशा हाँथ बदलती है
कितने वर्षों की मेहनत को मिट्टी में मिलाकर
क्या मिला तुमको मुझको गिरा कर
अरबों लगे बनाने में सालों लगे मेह्ताने में
वर्षों की जिरह बहस अदालती खाने में
वकीलों की मेहनत वादी की प्रतिवादिता बचाने को
मुद्दई की कोशिश अपनी बात मनवाने को
क्या मिला तुमको मुझको गिरा कर
दोनों जहाँ या रुपया या पैसा या शोहरत
थोड़ा सबर रखा होता बैठ कर इत्मिनान से
हर बात का हल होता है यदि बात हो प्यार से
कुछ तुम मान लेते हमारी कुछ हम समझ रखते
क्या कहना चाह्ते हो आप ये तो हम भी परखते
लेकिन न तुम कह पाए , ढंग से न जाने क्युं
न हम सुन पाए दिल से जो कहना चाह्ते थे तुम
जो न मानी, हमने, सारी मेहनत हो गई पानी पानी
मजदूर को मिली रोटी ये बात लगती है बचकानी
जनता का पैसा था पसीने की थी कहानी
बन गई , कुछ जिद्दी लोगों की मन की
पर उंची नाक हुई क्या किसी की
क्या मिला तुमको मुझको गिरा कर
दोनों जहाँ, या रुपया या पैसा या शोहरत
ये बात तो पड़ेगी मेरे यार मुझको समझानी
अफ्सरशाही के खेल में प्राकृतिक दोहन हुआ
रुपया गया पैसा गया , किसी को घरोंदा न मिला
जग हँसाई करा कर बिल्डर से खार खाकर
अफ्सरों से मिल कर कानूनी दरयाफ्त रंग लाई
एक था ट्विन टोवेर बस रह गई एक कहानी
एक था ट्विन टोवेर बस रह गई एक कहानी
क्या मिला तुमको मुझको गिरा कर
दोनों जहाँ या रुपया या पैसा या शोहरत